मेरे पिता का सपना है कि मैं ओलंपिक पदक जीतूं और उनके सपने को पूरा करना ही मेरा ध्येय है- भारतीय मुक्केबाज गौरव बिधूड़ी

2017 में विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतने के प्रभावशाली सीवी के साथ एक दुर्जेय मुक्केबाज,अपने प्रथम मुक़ाबले में ही जीतने वाले दूसरे भारतीय और कुल मिलाकर चौथे, एक प्रेरक वक्ता और व्लॉगर गौरव बिधूड़ी कई प्रतिभाओं के धनी हैं . 2018 में बॉक्सिंग अवार्ड ऑफ़ द ईयर के विजेता गौरव बिधूड़ी को 2018 से 2020 के बीच लगातार तीन वर्षों के लिए अर्जुन पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। गौरव बिधूड़ी एकमात्र भारतीय मुक्केबाज़ हैं जिन्हें  2015 में इटली टीम और 2016 में यूएसए टीम के साथ खेलने का मौक़ा मिला। शब्दों में इनके करियर को परिभाषित करना मुश्किल है। 

स्पोगो न्यूज़ के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, भारतीय मुक्केबाज गौरव बिधूड़ी इस बारे में बात करते हैं कि उनका यह सफ़र कैसे शुरू हुआ और मुक्केबाज़ी को पेशेवर रूप से अपनाया, उनका अंतिम लक्ष्य, चुनौतियों का किस प्रकार मुक़ाबला किया,मुक्केबाज़ी में उनके आदर्शों और मानसिक लचीलापन के महत्व के बारे में बताया।

प्रश्न 1) जब आपने पहली बार बॉक्सिंग शुरू की थी तब आप कितने साल के थे? आपको इस खेल से किसने परिचित कराया और किस बात ने आपको इसे पेशेवर रूप से अपनाने के लिए प्रेरित किया?

उत्तर. मैंने 7 साल की उम्र में बॉक्सिंग शुरू कर दी थी। मेरे पिता, धर्मेंद्र बिधूड़ी एक राष्ट्रीय स्तर के मुक्केबाज थे और मेरे कोच भी थे। ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करना और पदक जीतना उनका सपना था, लेकिन पारिवारिक समस्याओं के कारण वो मुक्केबाजी करियर जारी नहीं रख सके। इसके बावजूद, बॉक्सिंग के प्रति उनका प्यार उन्हें खेल से दूर नहीं रख सका और उन्होंने एक बॉक्सिंग क्लब ‘बिधूड़ी बॉक्सिंग क्लब’ की शुरुआत की जहाँ वे स्थानीय लोगों को मुफ्त में प्रशिक्षण देते थे। यहीं से मैंने अपने बॉक्सिंग करियर की शुरुआत की थी। मेरे पिता का सपना मेरा सपना है और मैं उनकी और अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए ओलंपिक में पदक जीतना चाहूँगा।

प्रश्न 2) अब तक आपने किन विभिन्न टूर्नामेंटों में भाग लिया है और आपका अंतिम लक्ष्य क्या है?

उत्तर. पहली प्रतियोगिता जो मैंने जीती वह 2004 में जूनियर दिल्ली स्टेट बॉक्सिंग चैंपियनशिप थी। इस तरह मेरी यात्रा शुरू हुई और जल्द ही मैंने कई और स्टेट और नेशनल चैंपियनशिप जीती। मेरी पहली अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता 2008 में जूनियर वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप थी और इसने हमारे देश और कई जूनियर और सीनियर अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए ख्याति अर्जित की। आज मैं विश्व पदक विजेता हूँ और मेरा लक्ष्य ओलंपिक में भारत के लिए पदक जीतना है।
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प्र 3) अब तक के अपने सफर में आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा है? आपने सकारात्मक सोच के साथ चोटों पर कैसे काबू पाया?

उत्तर. दूसरों के दृष्टिकोण से, मैं एक विश्व पदक विजेता हूँ और मैंने इतिहास रचा है, लेकिन किसी भी अन्य खिलाड़ी की तरह, मैंने कठिन समय सहा है और आलोचना का सामना किया है। जब मैंने बॉक्सिंग शुरू की थी, तो हर कोई इसके खिलाफ था और मेरे परिवार के सदस्य मेरे पिताजी पर मेरी जिंदगी खराब करने का आरोप लगाते थे। मेरे पिताजी ने उनकी टिप्पणियों को नजरअंदाज कर दिया और मुझे प्रशिक्षण देते रहे और उनके अथक प्रयासों के कारण ही मैं राज्य स्तर तक पहुंचा। उसके बाद, मैंने अपनी पहली सब जूनियर दिल्ली स्टेट चैंपियनशिप में चैंपियन बनने के लिए कड़ी मेहनत की। अगले ही दिन नेशनल चैंपियनशिप के लिए हमारा ट्रायल हुआ और सभी को हराकर मेरा चयन हो गया। हम अगली सुबह भिलाई के लिए निकलने वाले थे लेकिन उस रात फेडरेशन के लोगों ने मेरा नाम दूसरे बॉक्सर से बदल दिया। जब हमने मदद मांगी तो किसी ने हमारी मदद नहीं की लेकिन तभी से असली यात्रा शुरू हुई।
मैंने बाद में कई राष्ट्रीय चैंपियनशिप खेली और स्वर्ण पदक जीता और जूनियर इंटरनेशनल इवेंट में भारत का प्रतिनिधित्व किया। मैं क्वार्टर फ़ाइनल में हार गया और पदक नहीं पा सका जिसके कारण लोगों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन नहीं करने के लिए मेरी आलोचना की। हालांकि, मैंने हार नहीं मानी, धैर्य बनाए रखा, विश्वास था कि मेरा समय आएगा और विश्व चैंपियनशिप में कुछ सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाजों को हराकर मैंने कांस्य पदक जीत लिया।

प्र 4) आपके कैरियर के शुरुआती दिनों में बॉक्सिंग आइडल कौन थे?

उत्तर. जब मैंने बॉक्सिंग शुरू की तो मेरे आदर्श मैरी कॉम दीदी और विजेंदर भाई (विजेंदर सिंह) थे। विजेंदर भाई ने मुझे वास्तव में प्रेरित किया है क्योंकि उन्होंने सबसे बड़े आयोजनों में भारत के लिए पदक हासिल किए हैं और मॉडलिंग, अभिनय आदि से भी जुड़े रहे हैं। एथलीट खेल छोड़ने के बाद गायब हो जाते है मगर इन्होंने इतना कुछ हासिल किया है, यही कारण है कि मुझे इनसे प्रेरणा मिलती है। वे छोटे रोल्स में, मॉडलिंग, मीडिया में शामिल होते रहे है। मुझे उम्मीद है कि आने वाले सालों में मैं भी फिल्मों में काम करूंगा।

प्र 5) एक सफल मुक्केबाज बनने में मानसिक लचीलापन कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है?
उत्तर. हमने महामारी के दौरान शारीरिक और मानसिक शक्ति के महत्व को सीखा है। जो लोग मानसिक रूप से कमजोर हैं उन्हें इस समय काफी नुकसान उठाना पड़ा है और एक खिलाड़ी होने के नाते मुझे शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से मजबूत होना है। एक एथलीट का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा होता है लेकिन उससे उबरना और आगे बढ़ते रहना जरूरी है। मैंने अपने बॉक्सिंग करियर में बहुत सी चीजों का सामना किया है और मैं उस अनुभव का उपयोग एक प्रेरक वक्ता के रूप में करता हूँ।

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