(अंतिम पैरा में साल में सुधार के साथ रिपीट
नयी दिल्ली, पांच फरवरी (भाषा) आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच एशेज श्रृंखला परंपरागत हो चुकी है लेकिन भारत बनाम आस्ट्रेलिया टेस्ट मैचों में भावनाओं की अहमियत पिछले 75 वर्षों में दोनों देशों के बीच श्रृंखलाओं के नतीजों से देखी जा सकती है।
भारत और आस्ट्रेलिया के बीच पिछले 75 वर्षों में प्रतिद्वंद्विता काफी बढ़ चुकी है और नौ फरवरी से नागपुर में शुरू होने वाली आगामी चार टेस्ट मैचों की बॉर्डर-गावस्कर श्रृंखला भी काफी चुनौतीपूर्ण होने वाली है।
इससे पहले आस्ट्रेलियाई टीम के भारत में खेले गये कुछ बेहतरीन मैचों के आंकड़े किसी न किसी तरह काफी दिलचस्प रहे हैं।
ब्रेबोर्न स्टेडियम में भारतीय टीम 1969 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले टेस्ट में दूसरी पारी में सात विकेट पर 89 रन बनाकर मुश्किल में थी और उसे मैच बचाने के लिये किसी चमत्कार की जरूरत थी।
अजीत वाडेकर और श्रीनिवास वेंकटराघवन क्रीज पर थे। दोनों के बीच आठवें विकेट की साझेदारी बन रही थी लेकिन अंपायर शंभु पान ने वेंकटराघवन को विकेट के पीछे कैच आउट का विवादास्पद फैसला किया और यह भारत-आस्ट्रेलिया टेस्ट इतिहास के सबसे डरावनी घटनाओं में जुड़ गया।
रेडियो कमेंटेटर देवराज पुरी ने इस फैसले की काफी आलोचना की जिससे टीम का स्कोर आठ विकेट पर 114 रन हो गया। इससे दर्शकों का व्यवहार उग्र हो गया और उन्होंने स्टेडियम में कुर्सियां पटकनी शुरू कर दीं, स्टेडियम में पेय पदार्थों की खाली बोतलें फेंक दी। फिर स्टैंड में आग की लपटें देखकर खिलाड़ी भी भयभीत हो गये।
आस्ट्रेलिया के क्रिकेट लेखकर रे रॉबिन्सन सीसीआई के प्रेस बॉक्स में थे, उन्होंने अपनी आंखों देखी इस हिंसा का जिक्र अपनी किताब ‘द वाइल्डेस्ट टेस्ट’ में किया है।
स्टेडियम में ऐसे हालात के बावजूद आस्ट्रेलियाई कप्तान बिल लॉरी खेलना चाहते थे और भारत ने चौथे दिन का समापन नौ विकेट पर 125 रन से किया।
पांचवें दिन भारत ने आस्ट्रेलिया को 64 रन का लक्ष्य दिया जिसे उसने दो विकेट गंवाकर हासिल कर लिया और पांच मैचों की श्रृंखला में 1-0 से बढ़त बना ली और अंत में सीरीज 3-1 से जीती।
वर्ष 1986 में हुई श्रृंखला में मद्रास टेस्ट ‘टाई’ पर छूटा जिसमें दिवंगत डीन जोंस ने काफी मुश्किल हालात में दोहरा शतक जड़ा जबकि अंपायर विक्रमराजू को विवादास्पद पगबाधा फैसले के कारण अपना करियर गंवाना पड़ा।
भारत को 348 रन का लक्ष्य मिला था और बायें हाथ के स्पिनर रे ब्राइट ने तीन विकेट झटककर आस्ट्रेलिया को वापसी करायी जिससे क्रीज पर जमे रवि शास्त्री और 11वें नंबर के मनिंदर सिंह को अंत में जीत के लिये चार रन बनाने थे।
पर आफ स्पिनर ग्रेग मैथ्यूज (मैच में 10 विकेट झटकने वाले) मनिंदर को पगबाधा आउट किया लेकिन भारतीय बल्लेबाज को पूरा भरोसा था कि वह आउट नहीं थे लेकिन अंपायर ने फैसला दिया था और टेस्ट इतिहास में दूसरी बार एक मैच ‘टाई’ रहा था। विक्रमराजू को इसके बाद फिर टेस्ट अंपायरिंग का मौका नहीं मिला।
वहीं जोंस की बेहद गर्मी में खेली गयी 210 रन की पारी उनके करियर की सबसे अहम बन गयी। इस पारी के दौरान वह बीमार हो गये और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा।
वर्ष 2001 में शुरूआती टेस्ट में 10 विकेट की जीत के बाद आस्ट्रेलिया 1969-70 के बाद भारत में पहली बार श्रृंखला जीतने की ओर बढ़ रहा था लेकिन वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ ने 376 रन की महत्वपूर्ण साझेदारी निभाकर और हरभजन सिंह ने 13 विकेट झटककर अपनी टीम को जीत दिलायी।
युवा हरभजन सिंह की हैट्रिक के बावजूद आस्ट्रेलिया ने पहली पारी में 445 रन बनाये और मेजबान भारत को 171 रन पर समेटकर फॉलो ऑन दे दिया।
दूसरी पारी में चार विकेट पर 232 रन के स्कोर भारत को किसी चमत्कार की दरकार थी जो लक्ष्मण और द्रविड़ ने 376 रन की भागीदारी निभाकर किया और टीम ने सात विकेट पर 657 रन का विशाल स्कोर खड़ा किया। 384 रन के असंभव लक्ष्य का पीछा करने उतरी आस्ट्रेलियाई टीम हरभजन के 13 विकेट से 212 रन पर सिमट गयी।
ईडन गार्डन्स पर इस प्रदर्शन के बाद लक्ष्मण, द्रविड़ और हरभजन महान खिलाड़ियों की फेहरिस्त में शामिल हो गये।
आस्ट्रेलिया ने हालांकि 2004 में तीन साल बाद भारत में अगली श्रृंखला में 2-1 से फतह हासिल की।
भाषा नमिता आनन्द
Source: PTI News