(अपराजिता उपाध्याय)
नयी दिल्ली, 26 दिसंबर (भाषा) बचपन में अजय कुमार रेड्डी सैनिक बनकर देश की सेवा करना चाहते थे। जब उन्हें पता चला कि दृष्टिबाधित लोग सेना में प्रवेश नहीं कर सकते तो उनका दिल टूट गया।
कम उम्र में ही आंशिक रूप से दृष्टिबाधित हुए अजय ने हालांकि जल्द ही भारत की सेवा करने का एक और तरीका ढूंढ लिया: क्रिकेट खेलना और विश्व कप जीतना। उनके योगदान के लिए उन्हें अगले महीने अर्जुन पुरस्कार मिलेगा और वह दृष्टिबाधित क्रिकेट में यह सम्मान पाने वाले पहले खिलाड़ी बन जाएंगे।
आंध्र प्रदेश के गुराजाला में जन्में भारतीय दृष्टिबाधित टीम के कप्तान अजय ने चार साल की उम्र में एक दुर्घटना में अपनी बाईं आंख की रोशनी गंवा दी थी।
अजय ने पीटीआई से कहा, ‘‘मेरे माता-पिता किसान थे। एक दिन जब मेरे माता-पिता खेत में काम करने गए थे तो मैं सो नहीं पा रहा था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपनी मां के पास जाना चाहता था। जैसे ही मैं उठा, दरवाजे की कुंडी मेरी आंख के अंदर चली गई। मेरी सर्जरी हुई लेकिन मेरी बाईं आंख की रोशनी चली गई।’’
अजय ने कहा, ‘‘मुझे दाहिनी आंख से थोड़ा बहुत दिखता था लेकिन जब मैं 12 साल का हुआ तो मैं बोर्ड पर अक्षर नहीं देख पाता था।’’
पूरी तरह से दृष्टि गंवाने से बचने के लिए डॉक्टरों ने अजय के माता-पिता को उसे दृष्टिबाधितों के विद्यालय में ले जाने की सलाह दी।
अजय के माता पिता इसके बाद नरसारावपेट चले गए और 2002 में उनका दाखिला ‘लुथेरन हाई स्कूल फोर ब्लाइंड’ में करा दिया और इसके साथ उनके जीवन में नए सफर की शुरुआत हुई।
अजय ने कहा, ‘‘मुझे उस स्कूल में दृष्टिबाधित क्रिकेट के बारे में पता चला। मैंने यह भी सुना कि पाकिस्तान नंबर एक टीम थी, पाकिस्तान ने भारत को हराया था और उन्होंने तब विश्व कप भी जीता था’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह वह समय था जब दोनों पड़ोसी देशों के बीच तनाव चरम पर था। भारतीय संसद पर आतंकियों ने हमला किया था और सीमा पर दोनों देशों के सैन्य बलों का बड़े पैमाने पर जमावड़ा था।’’
भारतीय कप्तान ने कहा, ‘‘मुझे बहुत गुस्सा आया। मैं हमेशा से एक सैनिक बनना चाहता था और उस समय मैं सीमा पर मसलों के बारे में सुनता रहता था इसलिए मेरी मानसिकता सरल थी – भारत का हारना गलत है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘नियमों को जाने बिना मैंने फैसला किया कि मैं भारत के लिए खेलूंगा और उन्हें विश्व कप जिताऊंगा।’’
लेकिन तब अजय के लिए जिंदगी एक बड़ी अग्निपरीक्षा थी।
तैंतीस साल के अजय ने कहा, ‘‘यह हमारे लिए बहुत कठिन समय था। मेरे माता-पिता केवल खेती करना जानते थे। हमें एक महीने के बाद वित्तीय परेशानियां होने लगीं। हमें खाने के लिए भी पैसे उधार लेने पड़े।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरे माता-पिता ने चाय बेचना शुरू कर दिया और इडली-डोसा का स्टॉल लगाया। उन्होंने मुझे छात्रावास में रखा जिससे कि मुझे उचित भोजन मिले लेकिन मैं वहां नहीं रहा। मुझे लगा कि वे मुझे छोड़ रहे हैं।’’
अजय को क्रिकेट से मदद मिली और वे पूरी रात खेलते थे, सुबह सोते और दोपहर एक बजे उठकर फिर से खेलना शुरू कर देते थे।
उन्होंने 2010 में भारत के लिए पदार्पण किया और टी20 विश्व कप विजेता टीम का हिस्सा बने लेकिन इससे उन्हें ज्यादा खुशी नहीं मिली।
उन्होंने कहा, ‘‘पहली बार हमने टी20 विश्व कप जीता। पाकिस्तान क्रिकेटरों ने कहा ‘ओह, यह एक नया प्रारूप है, आप भाग्यशाली थे इसलिए जीत गए। वनडे में हम नंबर एक हैं’।’’
चोट से जूझते हुए खिताबी मुकाबले में नाबाद 74 रन बनाने वाले अजय ने कहा, ‘‘2014 एकदिवसीय फाइनल में पाकिस्तान को हराना मेरे जीवन का सबसे अच्छा पल था।’’
अजय एक बार एकदिवसीय विश्व कप, दो बार टी20 विश्व कप और एक बार एशिया कप खिताब जीतने वाली टीम का हिस्सा रह चुके हैं।
अर्जुन पुरस्कार वह मान्यता है जिसका दृष्टिबाधित क्रिकेट जगत लंबे समय से इंतजार कर रहा था।
अजय की दृष्टि धीरे-धीरे कम हो रही है और उन्हें बी2 (छह मीटर तक देख सकने वाले खिलाड़ी) से बी1 वर्गीकरण आना पड़ सकता है जिसमें खिलाड़ी पूरी तरह से या लगभग पूरी तरह से दृष्टिबाधित होता है।
लेकिन अजय का खेल से दूर जाने का कोई इरादा नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरी दृष्टि कमजोर हो रही है, मैं इलाज के लिए इधर-उधर भाग रहा हूं। अगर यह काम करता है तो मैं बी2 श्रेणी में बना रहूंगा, अन्यथा मुझे बी1 में जाना होगा। लेकिन मैं मरते दम तक क्रिकेट से जुड़ा रहूंगा। इसने मुझे सब कुछ दिया है।’’
Source: PTI News